धराली में प्रकृति का प्रकोप: चंद पलों में उजड़ा सब कुछ, पीड़ितों ने सुनाई आपबीती

धराली में प्रकृति का प्रकोप: चंद पलों में उजड़ा सब कुछ, पीड़ितों ने सुनाई आपबीती

धराली की त्रासदी: प्रकृति के तांडव ने छीनी गांव की मुस्कान

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में हाल ही में जो कुछ भी हुआ, उसने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया है। प्रकृति के इस भयानक कहर ने गांव की शांति को चंद सेकंड में तहस-नहस कर दिया। एक तरफ पहाड़ों की खूबसूरती के बीच बसा यह गांव अब तबाही का मंजर बन गया है, वहीं दूसरी ओर लोगों के चेहरों पर पसरा भय, उनकी टूट चुकी उम्मीदों की दास्तां बयां कर रहा है।

तबाही की वो रात
4 अगस्त की रात धराली गांव में मूसलधार बारिश और भूस्खलन ने कहर बरपाया। तेज गर्जना के साथ अचानक पहाड़ से चट्टानें और मलबा गांव की ओर लुढ़कने लगा। कुछ ही पलों में लोगों के मकान, खेत, दुकानें और जानवर मलबे में दब गए। बिजली गुल हो गई, संचार के सभी साधन ठप पड़ गए। स्थानीय लोगों के मुताबिक, सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि किसी को संभलने का मौका ही नहीं मिला।
लोगों ने बताया भयावह मंजर
घटना के बाद जब राहत दल मौके पर पहुंचा, तब वहां सिर्फ चीख-पुकार और उजड़े घरों के निशान बचे थे। कई परिवारों के लोगों की जान चली गई, कुछ अभी भी लापता हैं। बचाव कार्य जारी है, लेकिन लगातार बारिश के कारण मुश्किलें और बढ़ रही हैं। धराली के निवासी राकेश ने बताया, “रात के करीब 2 बजे अचानक जोर की आवाज़ आई। हम समझ भी नहीं पाए कि क्या हो रहा है। जब बाहर निकले तो चारों तरफ मलबा ही मलबा था। मेरा घर पूरी तरह से टूट चुका है, और मेरी छोटी बहन अब तक नहीं मिली है।”
एक अन्य पीड़िता, 70 वर्षीय चंपा देवी, अपने आँसू पोछते हुए बताती हैं, “मैंने अपनी ज़िंदगी में इतनी डरावनी रात कभी नहीं देखी। मेरी पूरी उम्र की कमाई इस मलबे में दबी रह गई। अब न रहने की जगह है, न खाने को कुछ।”
राहत कार्यों में जुटा प्रशासन
घटना के तुरंत बाद राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन ने राहत कार्य शुरू कर दिए। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें मौके पर पहुंच चुकी हैं। हेलीकॉप्टर से राहत सामग्री गिराई जा रही है और घायलों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। मुख्यमंत्री ने नुकसान की भरपाई का आश्वासन देते हुए मृतकों के परिजनों को ₹5 लाख की आर्थिक सहायता और बेघर हुए परिवारों के पुनर्वास की योजना की घोषणा की है।
प्राकृतिक आपदाओं से जूझता उत्तराखंड
धराली में आई इस प्राकृतिक आपदा ने एक बार फिर यह याद दिला दिया है कि उत्तराखंड कितना संवेदनशील है। हर साल बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाएं इस पहाड़ी राज्य को झकझोर देती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अनियंत्रित निर्माण, जंगलों की कटाई और पर्यावरणीय असंतुलन इन आपदाओं को और घातक बना रहे हैं।
पर्यावरणविद् डॉ. मनोज रावत कहते हैं, “हम प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करते जा रहे हैं और उसका नतीजा हमें इन आपदाओं के रूप में भुगतना पड़ रहा है। धराली जैसी घटनाएं हमें चेतावनी देती हैं कि अब समय आ गया है जब हमें विकास के साथ-साथ प्रकृति के संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा।”
जरूरत है दीर्घकालिक समाधान की
धराली की इस घटना ने न केवल वहां के निवासियों का जीवन बदल दिया, बल्कि पूरे राज्य के सामने एक सवाल खड़ा कर दिया है — क्या हम इन आपदाओं के लिए तैयार हैं? हर साल राहत और बचाव कार्य तो होते हैं, लेकिन जड़ों में जाकर समस्याओं का हल ढूंढना अब वक्त की मांग है।
सरकार को चाहिए कि वह केवल आपदा के बाद की प्रतिक्रिया तक सीमित न रहे, बल्कि पूर्व चेतावनी प्रणाली, सुरक्षित निर्माण, और स्थायी पुनर्वास योजनाओं पर गंभीरता से काम करे।
अंतिम शब्द
धराली की यह त्रासदी हमें बहुत कुछ सिखा कर गई है — कि प्रकृति के आगे इंसान की ताकत कुछ भी नहीं। आज जरूरत है कि हम पीड़ितों की मदद के लिए आगे आएं और भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। तभी हम सच्चे मायनों में इस खूबसूरत पहाड़ी राज्य को सुरक्षित और समृद्ध बना पाएंगे।
administrator

Related Articles