स्कूल फीस: बढ़ती लागत, नए कानून और अभिभावकों की उम्मीदें
वर्तमान समय में स्कूल फीस का मुद्दा देशभर के अभिभावकों के लिए चिंता का विषय बन गया है। निजी स्कूलों में लगातार बढ़ती फीस, पारदर्शिता की कमी और मनमानी शुल्क वृद्धि ने शिक्षा को आम लोगों की पहुंच से दूर कर दिया है। 2025 में यह मुद्दा और भी गर्माया, जब दिल्ली सरकार सहित कई राज्यों ने फीस नियंत्रण को लेकर नए कानून और नियम लाने की पहल की।

निजी स्कूलों में फीस वृद्धि की स्थिति
2025-26 शैक्षणिक सत्र के लिए कई निजी स्कूलों ने 10% से 30% तक फीस बढ़ा दी है। कुछ मामलों में तो यह वृद्धि 100% तक भी पहुंच गई, जिससे अभिभावकों पर आर्थिक बोझ और बढ़ गया। एक सर्वे के अनुसार, 81% अभिभावकों का कहना है कि उनके बच्चों के स्कूल ने 10% या उससे अधिक फीस बढ़ा दी है, जबकि 22% अभिभावकों ने 30% से अधिक वृद्धि का अनुभव किया। कुछ प्रतिष्ठित स्कूलों की वार्षिक फीस 10 लाख रुपये से भी अधिक है, जिससे उच्च आय वर्ग के लिए भी बच्चों की शिक्षा एक चुनौती बन गई है।
सरकार की पहल: दिल्ली स्कूल एजुकेशन बिल 2025
दिल्ली सरकार ने अभिभावकों को राहत देने के लिए दिल्ली स्कूल एजुकेशन (फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक 2025 को मंजूरी दी है। इस बिल के तहत:
कोई भी निजी स्कूल तय सीमा से अधिक फीस नहीं ले सकता।
अभिभावकों की शिकायत पर स्कूल पर 50,000 से 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूल की मान्यता रद्द की जा सकती है और संपत्ति जब्त की जा सकती है।
स्कूल में अभिभावकों की एक शुल्क विनियमन समिति होगी, जो फीस से जुड़े फैसलों में भागीदारी करेगी।
फीस वृद्धि के प्रस्ताव पर समिति, जिला और राज्य स्तर पर समीक्षा होगी, जिससे पारदर्शिता बनी रहेगी।
कानूनी लड़ाई और अभिभावकों की प्रतिक्रिया
स्कूल फीस वृद्धि के खिलाफ अभिभावकों ने सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने दिल्ली सरकार, शिक्षा निदेशालय और स्कूलों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल सरकारी जमीन का लाभ उठाकर भी मनमानी फीस वसूल रहे हैं। वहीं, स्कूल प्रबंधन का तर्क है कि शिक्षकों के वेतन, रखरखाव और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए फीस बढ़ाना जरूरी है। कोर्ट की सख्ती और सरकार की पहल से अभिभावकों को उम्मीद जगी है कि अब स्कूलों की मनमानी पर रोक लगेगी।
आगे की राह: पारदर्शिता और संतुलन की जरूरत
भारत में शिक्षा का खर्च लगातार बढ़ रहा है, जिससे मध्यम और निम्न आय वर्ग के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाना कठिन हो गया है। सरकार की ओर से लाए गए नए कानून और सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता से उम्मीद है कि आने वाले समय में स्कूल फीस में पारदर्शिता और संतुलन आएगा। साथ ही, स्कूलों को भी चाहिए कि वे अभिभावकों की आर्थिक स्थिति का ध्यान रखते हुए ही फीस में बदलाव करें। शिक्षा केवल व्यापार नहीं, बल्कि समाज के भविष्य का निर्माण है—इसी भावना के साथ आगे बढ़ना समय की मांग है।

